Thursday 29 September 2011

बात पते की

हे दोस्तों! मै आज आपको कुछ ऐसी बाते बताने वाली हू जो अगर आपने अपने जीवन मै उतार ली तो बहुत काम की सिद्ध हो सकती है.

१. क्रोध
२.मान 
३. माया 
४.लोभ 

ये चारो कषाय के नाम है. अब आप सोच रहे होंगे कि मैने पता नहीं क्या क्या लिख दिया है. अब मै आपको बताती हू कि इनका क्या अर्थ है.
 हर कोई भगवन बनना चाहता है लेकिन उसके लिए हमने क्या किया है या क्या कर रहे है? हम काम तो संसार बढाने के कर रहे है और चाह मुक्ति की कर रहे है.तो ये केसे संभव है. 
कहते भी है :- "बोया बीज बबूल का तो आम कहा से पाए"
हमारी हालत भी कुछ ऐसी ही बनी हुई है.जैसे श्रीमंत की ताकत पैसे में, गायक की गले में, स्त्री की सुन्दरता में, वृक्ष की जड़ में, मकान की नीव में होती है वेसे ही संसार की ताकत कषाय में होती है | अगर नीव कच्ची हो तो मकान ढह जाता है, नेता की कुर्सी छीन जाये तो उसकी कोई कीमत नही रहती, गायक का गला ख़राब हो जाये तो उसकी कीमत नही रहती, उसी प्रकार समझना की अगर कषाय की जड़ कमजोर पड़ी तो भगवन बनने में ज्यादा देर नही है | 
मै पुछु कि हम कषाय क्यों करते है? तो
इसके २ कारण है:- १. सुख पाने के लिए, २. दुःख को टालने के लिए|
आपका लक्ष्य अच्छा है पर लक्ष्य किसके ऊपर रखा हुआ है| कषाय के द्वारा ही सुख पाना और दुःख को टालना चाहते है हम| ये तो वही बात हो गयी कि लक्ष्य तो कपडे स्वच्छ रखने का है लेकिन उसके लिए कोयले का उपयोग कर रहे है| कोई व्यक्ति यदि पैसे सुरक्षित रखने के लिए गुंडों को दे दे तो क्या वो पैसे सुरक्षित रखेंगे? लक्ष्य अच्छा है पर उसे पाने की राह, कषाय करना, गलत है|

१. क्रोध :->  अर्थात गुस्सा. मै पुछु कि क्रोध क्यों आता है? यदि किसी ने अपमान कर दिया, हमारी इच्छापूर्ति नही हुई, सफलता नही मिली,परिवन वाले थोडा सा विपरीत चले गए तो हमें गुस्सा आने लगता है| व्यक्ति यही चाहता है कि मनचाहा हो, इच्छापूर्ति नहीं हो रही है तो कषाय का सहारा लेता है, गुस्सा आने लगता है| व्यक्ति ये सोचता है कि मै एक शब्द बोलूँगा तो सामने वाला चुप हो जाएगा, सामने वाले को दबाने के लिए गुस्सा करते है| और यदि सामने वाला दबने के बजाय उग्र हो गया तो विचार करते है कि कहा बोल दिया इससे तो नहीं बोलता तो ही अच्छा रहता कम से कम १० बाते तो नहीं सुननी पड़ती| इतने लोगों के बीच मेरी इज्जत तो ख़राब नहीं होती| क्रोध तभी अच्छा लगा है जब सामने वाला दब जाए|
जैसे हर साँप काँटने वाला नहीं होता फिर भी साँप को पला नहीं जाता उसी प्रकार पुण्य के उदय से भले गुस्सा से कम हो जाए पर हर बार ऐसा हो ये संभव नहीं|
गुस्से को क्षमा से जीता जाता है.जैसे जैसे गुस्सा घटेगा क्षमा भाव बढेगा| क्षमा का गुण अपने आप आ जाएगा|
"क्षमा वीरस्य भूषणं"| 

२. मान :-> मान क्यों आता है?
'अहं' कि पुष्टि करने के लिए| कोई जरा सा भी अपमान कर दे तो आग बबूला हो जाते है| क्या समझता है मुझे, ऐसा कहने कि हिम्मत केसे हुई उसकी और भी न जाने क्या-२ कहने लगते है और अपना दिमाग ख़राब कर बैठते है| पर क्या कभी सोचा कि हम किस बात का अभिमान कर रहे है इतना? हम है कौन? ऐसे कोई से तीस-मार-खा हो गये जो किसी के कहे दो शब्द नहीं सुन सकते| अपमान उनका होता है जो अभिमान करता है|
यदि व्यक्ति ये  विचार कर ले कि मै कौन हू तो विनायता को प्राप्त कर लेगा|

३. माया :-> माया क्यों करते है?
अच्छा लगाने के लिए, माया करके विश्वास लाता है| हर वो व्यक्ति जो माया करता है बहरूपिया होता है| सुख पाने के लिए,विश्वास बनाने के लिए माया करता है| किसी पर विश्वास जमाने के लिए माया मत करो| ग्राहक पर विश्वास जमाने के लिए झूठी कसमे मत खाओ| लोग कहते है जिस भाव मै लाया हू उसी भाव मै दे रहा हू तभी तो बिल्डिंग कि बिल्डिंग खड़ी हो गई न?! क्या अपने कभी सोचा है कि मैने धोखा किया ऐसा करके?
माया करने से मित्रता का नाश होता है| रिश्तो मै खटास आ जाती है|

४.लोभ :-> अर्थात लालच| लोभ क्यों करते है?
धन कि प्राप्ति के लिए|लोभ से तो सभी चीजों का नाश हो जा है| लोभी व्यक्ति न खुद शांति से जी सकता है और ना ही दूसरों को शांति से जीने से जीने देता है|
महान कवि कबीर दस जी ने कहा है =>
"माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए|
हाथ मले और सिर धुनें,लालच बुरी बलाय|| "
अंत मै बस यही कहना चाहूंगी कि
"क्रोध से विनय का, मान से प्रीति  का,
माया से मित्रता का, और लोभ से सभी का विनाश होता है|"

ये कषाय छोड़ने योग्य है| हमे इन्हें छोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए|

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